हूं बेटी तो क्या
कागज़ के तीर भी आसमानों में उड़ा सकती हूं,
हूं बेटी तो क्या,मै नया आसमा भी बना सकती हूं।
मुझको दुनिया में लाने से डरने वालों,
मै हूं जन्मदात्री ,मै नई दुनिया बना सकती हूं।
मेरे पथ में कांटे बिछाने वालों,ये भी सुन लो,
मै हूं महकी सी कली ,मै सारा चमन बसा सकती हूं।
जितना रोकोगे ,टोकोगे और करोगे भेदभाव,
मै हूं सागर सी गहरी,मै भवसागर को तार सकती हूं
हूं बेटी तो क्या,मै नया आसमा भी बना सकती हूं।
है प्रचण्ड मेरा व्यक्तिव ,चंदन सा शीतल मन,
मुझको क्रोध से नहीं , भावनाओं से छला जाता है।
हूं पराया धन,इस अलंकार से सजाया जाता है।
अब न आऊंगी छलावे में,मैंने ये संकल्प किया,
पुरुष के पौरुष को मैंने ही संपूर्ण किया,
धरा के सृजन का अधिकार जब प्रभु ने दिया
फिर हो कौन तुम ?मुझे निर्लज्ज कहने वाले,
लज्जा और संस्कार का पाठ पढ़ाने वाले।
हूं जीवधारी मै भी तुम्हारी ही तरह,
मैंने सृष्टि के आरम्भ का शंखनाद किया है।
मै हूं सौभाग्य की कुंजी,मै हर दुख को हर सकती हूं,
हूं बेटी तो क्या,मै जीवन बदल सकती हूं।
मेरे अंदर एक तूफान पला करता है,
क्यों ये समाज मुझसे जला करता है,
है प्रेम ही प्रेम मेरे अंतर्मन में,
रहती हूं सदैव इस अन्तर्द्वन्द में,
क्यों मेरे अस्तित्व को नकारे ये समाज,
मै हूं,मै ही हूं,दुर्गा,काली,सीता,गौरा का स्वरूप आज।
कैसे देकर दुःख बेटी को,मंदिर में जाओगे,
करोगे बहू का अनादर,तो वरदान कभी न पाओगे,
मै हूं शक्ति का स्वरूप, मै ब्रम्हांड हिला सकती हूं
हूं बेटी तो क्या ,मै नया आसमा बना सकती हूं।।
हूं बेटी तो क्या ,मै नवसंसार बना सकती हूं।।
रौशन💐
Fiza Tanvi
29-Sep-2021 10:38 AM
Good
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🤫
28-Sep-2021 03:57 PM
बेहतरीन रचना...👌👌
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Fiza Tanvi
28-Sep-2021 12:47 PM
Waah
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